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दोहे 2

*दोहे* ज्ञान बिना संसार ला, कोरा कागज जान। जतका इहाँ बटोर ले, बरसत हावय ज्ञान।।(1) मत मारव पर जीव ला, सबला एके जान। पूरा ए संसार ला, गढ़े हवय भगवान।।(2) भाई भाई के देंह मा, हावय एके खून। धन दौलत के आड़ मा, तन ला खागे हून।।(3) देख देख पर दोष ला, बितगे कतको साल। अइसे आदत ला तहूँ,मनले अपन निकाल।।(4) अपने दोष दिखे कहाँ,पर के दिखे हजार। जिनगी हावय कीमती,जेला झन ना बार।।(5)  बदला ले के भावना,ला करदे तै दूर। सजा देहि श्री राम हा, जेखर हवय कसूर।।(6) दूध म पानी झन मिला,छँटहि एक दिन फेर। इहाँ गवाही राम हे,होय नही अंधेर।।(7) अपने दुःख के सही,पर के दुःख तै जान। सबला जाना हे कभू,समय हवय बलवान।।(8) सांस सांस हे कीमती,करव सही उपयोग। रुक जाही कब हे पता,ताकत हावय रोग।।(9) कोन अकेला हे भला,कोनो हावय संग। ओला निर्बल जान के,झन करबे तै तंग।।(10) अदला बदला हे इहाँ,हवय समय के फेर। होथे सही नियाँव हा, मिलथे सांझ अबेर।।(11)     *ज्वाला प्रसाद कश्यप*              *(शिक्षक)*        *भठली कला ,मुंगेली*

कविता

*आज के तुलसी दास* बरसत पानी कड़कत बिजली, आधा     रात   चउमास के। रत्नावली   ह   देखिच, चाल ल तुलसी दास के।।(1) हे पति  हे स्वामी, तोर मया ह का काम के। ए नरक ले तर जाबे,  नाम लेबे त श्री राम के।।(2)  तुलसी के बुखार उतरगे, रत्ना के सुन के बोली। उमर भर के बीमारी ले, तुलसी ह पागे राम के गोली।(3) राम ल पाए बर रत्ना ह, बनगे तुलसी के गुरु। घर ले बाहिर निकल के, रामायण लिखे  करिच शुरू।(4) आज के रत्ना ह समझाथे तुलसी दास ल। धरती म बईठ के अमरथे अकास ल।।(5) रत्ना ह ठंडा होथे, तुलसी ह गरम होथे। रत्ना बर तुलसी के मन म बड़ भरम होथे।।(6) रत्ना ह थाना म करथे शिकायत पेस। तुलसी दास बर लग जाथे दहेज के केस।(7) रत्ना तुलसी दुनो झन जमाथे अब्बड़ धाक। आखिर म एक दूसर के, हो जाथे तलाक।।(8) नारी के आरक्षण ल झन समझबे खेल। ओ तुलसी ह राम ल पागे तोला भेजत हाँवव जेल।।(09) जेल घर के आगी म, चाउर दार सही चुरबे। ओ समय के तुलसी म अरे पगला तैहा कहाँ पुरबे।।(10)        *ज्वाला प्रसाद कश्यप*         *भठली कला(मुंगेली)*           *8770734890*

कविता

* संगी आतो गांवे म * ------------------------------- संगी आतो गांवे म,खेलब आज होली । तन सिंगारे हे बसंत,निक लगे मीठ बोली।। रिगबिग दिखे गली खोर,रंगीन दिखे बाग़ । मन बैरी ह झूमें हे, कोयली धरे हे राग ।। लईका सियानी सबो ,धरे हे पिचकारी। पनिहारिन के गोठ हे ,करे जम के चारी।। गली खोर फ़ाग गूँजे, लइका बूढ़ा संग। हाँथ म पिचकारी धरे,लाली पिवरा रंग।। ज्वाला प्रसाद कश्यप ( शिक्षक) भठली कला,झझपुरी खुर्द मुंगेली 8770734890

झड़ी होगय

बिन बादर के झड़ी होगय। करगा निकल गे,धान ह तरी होगय ।। गंगा निरमल गंगा,आज मतलागे, बोतल के पानी फरी होगय।। गाय के सजा होगय,बघवा संग लड़ई मा, बघवा सबो ड़हर ले बरी होगय।। टंगिया तलवार के लड़ई म,हंवव गवाही, कति बोलंव बीच म मोर नरी होगय।। सुखाए रुख ल हरियर करेंव पानी डार के, तेखर सेती हाँथ म हंथखड़ी होगय।। ज्वाला प्रसाद कश्यप (शिक्षक L.B.) भठली कला ,मुंगेली छ,ग, 8770734890,7566498583

बिन बदर

छत्तीसगढ़ी कविता   *  ओखरे शरण मा   * ओखरे शरण मा जाके पूछव,                  जेन ह जग ला पालत हे। मोर तीर झन आके पूछव,                काबर धरती हालत हे।। टोपा  बांध के बइठे हे,                  लूको के अपन आँखी । सब के करनी कहाँ जाही,                    हावय सुरुज ह साखी।। अपन बर तो फूल के रस्ता,      दूसर बर धरती ला उछालत हे।। (01)मोर तीर.... सब के आघू म रोवत हावय,                     ढरकावत हे आंसू। ओही थारी के छेद करत हे,                  जाके परदा के पासू।। आंसू ल देख के दुःख बिसरागे हमर. कहत हन हमला ओमन तारत हे।।(02)मोर तीर.... पापी संग म धरमी घलो मन,                 हो जाथे पाप के भागी। सबला एक दिन जलना परही,             जब धरती उगलही आगी।। दाना बदरा के होही चिन्हारी,         ऊपर वाले चन्नी धर के चालत हे।।(03) मोर तीर......                  *ज्वाला प्रसाद कश्यप*              शास.पूर्व माध्य.शाला-झझपुरी खुर्द               मुंगेली (छ.ग.)8770734890

बिन बादर के

छत्तीसगढ़ी कविता   *  ओखरे शरण मा   * ओखरे शरण मा जाके पूछव,                  जेन ह जग ला पालत हे। मोर तीर झन आके पूछव,                काबर धरती हालत हे।। टोपा  बांध के बइठे हे,                  लूको के अपन आँखी । सब के करनी कहाँ जाही,                    हावय सुरुज ह साखी।। अपन बर तो फूल के रस्ता,      दूसर बर धरती ला उछालत हे।। (01)मोर तीर.... सब के आघू म रोवत हावय,                     ढरकावत हे आंसू। ओही थारी के छेद करत हे,                  जाके परदा के पासू।। आंसू ल देख के दुःख बिसरागे हमर. कहत हन हमला ओमन तारत हे।।(02)मोर तीर.... पापी संग म धरमी घलो मन,                 हो जाथे पाप के भागी। सबला एक दिन जलना परही,             जब धरती उगलही आगी।। दाना बदरा के होही चिन्हारी,         ऊपर वाले चन्नी धर के चालत हे।।(03) मोर तीर......                  *ज्वाला प्रसाद कश्यप*              शास.पूर्व माध्य.शाला-झझपुरी खुर्द               मुंगेली (छ.ग.)8770734890

काबर धरती

छत्तीसगढ़ी कविता   *  ओखरे शरण मा   * ओखरे शरण मा जाके पूछव,                  जेन ह जग ला पालत हे। मोर तीर झन आके पूछव,                काबर धरती हालत हे।। टोपा  बांध के बइठे हे,                  लूको के अपन आँखी । सब के करनी कहाँ जाही,                    हावय सुरुज ह साखी।। अपन बर तो फूल के रस्ता,      दूसर बर धरती ला उछालत हे।। (01)मोर तीर.... सब के आघू म रोवत हावय,                     ढरकावत हे आंसू। ओही थारी के छेद करत हे,                  जाके परदा के पासू।। आंसू ल देख के दुःख बिसरागे हमर. कहत हन हमला ओमन तारत हे।।(02)मोर तीर.... पापी संग म धरमी घलो मन,                 हो जाथे पाप के भागी। सबला एक दिन जलना परही,             जब धरती उगलही आगी।। दाना बदरा के होही चिन्हारी,         ऊपर वाले चन्नी धर के चालत हे।।(03) मोर तीर......                  *ज्वाला प्रसाद कश्यप*              शास.पूर्व माध्य.शाला-झझपुरी खुर्द               मुंगेली (छ.ग.)8770734890