दोहे 2
*दोहे* ज्ञान बिना संसार ला, कोरा कागज जान। जतका इहाँ बटोर ले, बरसत हावय ज्ञान।।(1) मत मारव पर जीव ला, सबला एके जान। पूरा ए संसार ला, गढ़े हवय भगवान।।(2) भाई भाई के देंह मा, हावय एके खून। धन दौलत के आड़ मा, तन ला खागे हून।।(3) देख देख पर दोष ला, बितगे कतको साल। अइसे आदत ला तहूँ,मनले अपन निकाल।।(4) अपने दोष दिखे कहाँ,पर के दिखे हजार। जिनगी हावय कीमती,जेला झन ना बार।।(5) बदला ले के भावना,ला करदे तै दूर। सजा देहि श्री राम हा, जेखर हवय कसूर।।(6) दूध म पानी झन मिला,छँटहि एक दिन फेर। इहाँ गवाही राम हे,होय नही अंधेर।।(7) अपने दुःख के सही,पर के दुःख तै जान। सबला जाना हे कभू,समय हवय बलवान।।(8) सांस सांस हे कीमती,करव सही उपयोग। रुक जाही कब हे पता,ताकत हावय रोग।।(9) कोन अकेला हे भला,कोनो हावय संग। ओला निर्बल जान के,झन करबे तै तंग।।(10) अदला बदला हे इहाँ,हवय समय के फेर। होथे सही नियाँव हा, मिलथे सांझ अबेर।।(11) *ज्वाला प्रसाद कश्यप* *(शिक्षक)* *भठली कला ,मुंगेली*